अनैतिकता
आचार्य
तुलसी के सत्संग के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचा करते थे। एक बार किसी जिज्ञासु ने
उनसे पूछ लिया, ‘परलोक सुधारने के लिए क्या
उपाय किए जाने चाहिए?’ आचार्यश्री ने कहा, ‘पहले तुम्हारा वर्तमान जीवन कैसा है या तुम्हारा विचार व आचरण कैसा है, इस पर विचार करो। इस लोक में हम सदाचार का पालन नहीं करते, नैतिक मूल्यों पर नहीं चलते और मंत्र-तंत्र या कर्मकांड से परलोक को
कल्याणमय बना लेंगे, यह भ्रांति पालते रहते हैं।’
आचार्य महाप्रज्ञ प्रवचन में कहा करते थे, ‘धर्म
की पहली कसौटी है आचार, और आचार में भी नैतिकता का
आचरण। ईमानदारी और सचाई जिसके जीवन में है, उसे दूसरी
चिंता नहीं करनी चाहिए।’ एक बार
उन्होंने सत्संग में कहा, ‘उपवास, आराधना, मंत्र-जाप, धर्म
चर्चा आदि धार्मिक क्रियाओं का तात्कालिक फल यह होना चाहिए कि व्यक्ति का जीवन
पवित्र बने। वह कभी कोई अनैतिक कर्म न करे और सत्य पर अटल रहे। अगर ऐसा होता है, तो हम मान सकते हैं कि धर्म का परिणाम उसके जीवन में आ रहा है। यह परिणाम
सामने न आए, तो फिर सोचना पड़ता है कि औषधि ली जा रही है, पर रोग का शमन नहीं हो रहा। चिंता यह भी होने लगती है कि कहीं हम नकली
औषधि का इस्तेमाल तो नहीं कर रहे।’आज सबसे बड़ी विडंबना यह है कि आदमी इस लोक में सुख-सुविधाएं जुटाने
के लिए अनैतिकता का सहारा लेने में नहीं हिचकिचाता। वह धर्म के बाह्य आडंबरों
कथा-कीर्तन, यज्ञ, तीर्थयात्रा, मंदिर दर्शन आदि के माध्यम से परलोक के कल्याण का पुण्य अर्जित करने का
ताना-बाना बुनने में लगा रहता है
bilkul aapke baat se sahmat hoon!!!
Roshan Ji,
Manushya ko vahi pasand hai jo saral hai aur uskay matlab ka hai.....
baaki sab aachar, vichaar, dharm, satya bhavna to dikhane ke liye hai ..... jivan chakr isi gati se sadiyon se chal raha hai..... Parivartan ki gunjaish kam ..... sadguno ke aachran ki kalpana kar sakte hain jivan mein utarne ke liye abhi soch nahin hai manav ney.....
Surinder Ratti
Mumbai
Surinder
bilkul sachchi bat kahi aapne.
सामयिक और सार्थक प्रस्तुति, आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.
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